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Sunday, 31 July 2016

मैदान ए महशर में उम्मत की शफ़ाअत – 2



✦ 16 - सीरत उन नबी सल-अल्लाहू अलैही वसल्लम 
(मैदान ए महशर में उम्मत की शफ़ाअत – 2)

✦ …….फिर लोग मूसा अलैही सलाम के पास आएँगे वो भी यही कहेंगे में इस लायक़ नही अपनी ख़ाता जो उन्हों ने दुनिया में की थी याद करेंगे , (और कहेंगे) तुम ऐसा करो ईसा अलैही सलाम के पास जाओ वो अल्लाह के बंदे, और उसके रसूल हैं, उसका ख़ास कलमा और ख़ास रूह हैं. यह लोग ईसा अलैही सलाम के पास आएँगे वो कहेंगे में इस लायक़ नही तुम ऐसा करो मुहम्मद सललाल्लाहू अलैही वसल्लम के पास जाओ वो अल्लाह के ऐसे बंदे हैं जिन की अगली पिछली खताएं सब बख़्श दी गयी है आख़िर यह सब लोग जमा हो कर मेरे पास आएँगे. 

✦ मैं फिर अपने रब की बरगाह में हाज़िर होने की इजाज़त मांगूगा मुझ को इजाज़त मिल जाएगी. मैं अपने रब को देखते ही सजदे में चला जाऊंगा और जब तक उसको मंज़ूर होगा वो मुझको सजदे ही में रहने देगा. उसके बाद हुक्म होगा मुहम्मद सलअल्लाहू अलैही वसल्लम अपना सर उठाओ और अर्ज़ करो तुम्हारी अर्ज़ सुनी जाएगी, तुम्हारी दरख़्वास्त मंज़ूर होगी, तुम्हारी सिफारिश मक़बूल होगी इस वक़्त में अपने मलिक की इस तरह हम्द (तारीफ़) करूँगा जो वो मुझ को सीखा चुका है. ( या सिखलाएगा) फिर लोगों की सिफारिश शुरू कर दूँगा. सिफारिश की एक हद मुक़र्रर कर दी जाएगी. मैं उनको जन्नत में ले जाऊंगा फिर (दूसरी बार) लौट कर अपने रब के पास हाज़िर हुंगा और फिर से उसको देखते ही सजदे में चला जाऊंगा और जब तक उसको मंज़ूर होगा वो मुझको सजदे ही में रहने देगा उसके बाद हुक्म होगा मुहम्मद सलअल्लाहू अलैही वसल्लम अपना सर उठाओ और अर्ज़ करो तुम्हारी अर्ज़ सुनी जाएगी........
सही बुखारी , जिल्द 8 , हदीस 7410 – Part 2


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